नामुमकिन अब मेरे जीवन का ये सफर लगता है
तुम बिन सदियो सा ,अब एक-एक पहर लगता है,
नहीं भाता तुम्हारें बगैर ,अब कुछ भी मुझको,
खाना-पीना तक ,मुझको अब ज़हर लगता है
शून्य हो गया है, मेरा हाड़-मांस का बदन भी ,
मस्तिष्क ,तुम्हारी यादों के ज्वर में जल रहा है,
स्मृतिपटल में बस तुम्हारी ही छवि दिखाई देती है
ध्यान भी,तुम पर आकर कहीं अटक सा गया है
रूक गया है अब मेरा सब कुछ तुम पर आकर
ये वक्त भी मेरा तुम्हारी आस में ठहर सा गया है
जो भी हो रहा सब ,घटनाक्रम समझ के परे है मेरे
मायूस,थका,उदास ,अब हर एक मंजर हो गया है
जीवन जीने का सरस-रस भी ,अब नीरस हो गया है
भूत-वर्तमान-भविष्य मेरा सब एक सदृश हो गया है
नामुमकिन अब,मेरे जीवन का ये सफर लगता है,
तुम बिन सदियो सा, अब एक-एक पहर लगता है ।।
Nice
ReplyDeleteThank u so much
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